
This is about the days when I used to study in 11th grade
धीरे-धीरे समय बीतता गया, मेरी दोस्ती एक कुशाल नाम के लड़के से हो गयी। हम साथ-साथ पढ़ते और कभी-कभी तो हम लोग क्लास बंक करके घूमने चले जाते थे। हमारी दोस्ती इतनी गहरी हो गई कि हम लोग फोन पे भी काफी देर तक स्कूल के काम के बहाने बातें करने लगे।
अचानक एक दिन कुशाल ने मुझे अपने घर बुलाया, बोला कुछ जरूरी काम है। मैंने बिना काम पूछे उसके घर जा पहुँची। उसने मुझे चाय के लिए पूछा, मैंने हाँ कर दी। कुशाल ने चाय का प्याला मेरे हाथ में थमाते हुए बोला “घर पर सब ठीक है।” हमने बोला “हाँ सब तो ठीक है, बस दादी की थोड़ी तबियत खराब है”।
हम बातें कर ही रहे थे कि अचानक कुशाल मेरे सामने आकर बैठ गया और बोला “मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ, क्या तुम मेरे साथ शादी करोगी। इतना सुनते ही मैं खड़ी हो गई क्योंकि मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या बोलूँ, मैं ऐसे भूत बनकर खड़ी थी जैसे मुझे किसी चीज का सदमा लगा हो। फिर से दोबारा उसके बोलने पर मैंने हाँ कर दिया क्योंकि मैं भी कुशाल से बहुत प्यार करती थी। इसके बाद हम हर रोज मिलने लगे, काफी सारी बातें भी करने लगे।

धीरे-धीरे समय बीतता गया। हमारे स्कूल की पढ़ाई भी पूरी हो गई। हम कॉलेज में आ गए हमारा प्यार समय के साथ-साथ गहरा होता गया। कॉलेज में भी हमने साथ-साथ पढ़ाई पूरी की। उसके बाद कुुशाल की जॉब मुंबई के एक कंपनी में लग गई। वह दिन भी नजदीक आ गया। जब कुशाल को नौकरी के लिए मुंबई जाना था।
उसके एक दिन पहले हम दोनों मिले और उस दिन हम दोनों बहुत रोए थे क्योंकि कुशाल मुंबई जा रहा था। ऐसा पहली बार हुआ था कि हम अलग-अलग हो रहे थे। मन में डर भी था पता नहीं अब कभी मिलेंगे या नहीं। कुशाल मुझे बहुत समझाया कि मैं जल्दी ही तुमसे मिलने आऊँगा, जैसे ही मेरी छुट्टी होगी मैं सिर्फ तुम्हारे पास तुमसे मिलने आऊँगा।
अगले दिन कुशाल मुंबई चला गया। मैंने भी यहाँ रायबरेली में प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने का काम शुरू कर दिया। कुछ दिनों के बाद मेरे माता-पिता को मेरी शादी की चिंता सताने लगी। वह मेरे लिए लड़का भी ढूंढने लगे। जब ये बात मुझे पता चली तो मैं बहुत परेशान हो गई।

कुशाल से भी मेरी बात नहीं हो पा रही थी कि मैं यह सारी बातें, उसको बता सकूँ। एक दिन मैंने हिम्मत करके अपने माता-पिता से जाकर बोला कि मैं कुशाल से शादी करूँगी। मेरे माता-पिता मेरी बात सुनकर चौक गए क्योंकि उन्हें तो किसी कुशाल के बारे में पता नहीं था।
मेरे पिता बहुत ही स्वाभिमानी किस्म के व्यक्ति थे इसीलिए उन्होंने बिना कुछ पूछे ही मना कर दिया कि यह नहीं हो सकता। मेरे बार-बार प्रार्थना करने के बाद भी वे तैयार नहीं हुए। मेरा घर से बाहर जाना भी बंद कर दिया। अब मै बिल्कुल अकेले पड़ गई थी। कुशाल से भी बात नहीं हो पा रही थी कि उससे ही कुछ बोलू जिससे वह मेरे माता-पिता को शादी के लिए मना सके।

मेरे पिता ने मेरी शादी एक रुपेश नाम के लड़के से तय कर दी जो मेरे पिता के ननिहाल से था। अब मेरे पास शादी करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था। शादी की तारीख जैसे-जैसे पास आती गई वैसे-वैसे मेरी बेचैनी भी बढ़ती जा रही थी। मैं कुशाल का इंतजार कर रही थी कि वह आएगा और मेरे माता-पिता को मनाकर मुझसे शादी करेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
मेरी शादी की तारीख भी आ गई, मैं दुल्हन की जोड़े में अपने कमरे में निराश बैठी रो रही थी। तभी अचानक से मेरे दिमाग में आया कि मैं इस शादी से भाग जाऊँ और मैं चुपके से दबे पाँव घर के पिछले दरवाज़े से बाहर आ गई। उसके बाद रेलवे स्टेशन पहुँचकर ट्रेन से मुंबई आ गई। कुशाल के घर का पता मैंने उसके छोटे भाई विशाल से ले लिया था।
जब मैं कुशाल के घर पहुँची तो वहाँ पर जो देखा उससे तो मेरे पैर के नीचे से जमीन ही खिसक गई। मैंने देखा कुशाल की शादी हो रही थी। जब मैं कुशाल के सामने गई तो उसने मुझे देखकर ना पहचानने का नाटक किया। मेरे बार-बार बोलने पर भी वह मुझे पहचानने से इंकार कर दिया और अपने घर से जाने के लिए बोल दिया।

अब मैं बिल्कुल अकेली पड़ गई थी। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ। मुझे एहसास भी हो रहा था कि मैंने कितनी बड़ी गलती कर दी, अपने पिता का घर छोड़ कर। वों भी एक अंजान लड़के पर भरोसा करके। मैं बहुत रोई और अपने घर वापस आने का फैसला किया है।
जब मैं घर पहुँची तो वहाँ देखा कि मेरी माँ रो रही थी क्योंकि मेरे पिता मेरी इस गलती और अपनी बेज्जती को सह ना सके जिससे वह इस दुनिया से चले गये थे। अब मुझे अपनी इस गलती से बहुत ही पश्चाताप हो रहा था क्योंकि इसकी वजह से मैंने अपने पिता को खो दिया था।